Thursday, January 26, 2017

Mahrajganj Of Azamgarh

आधुनिकता और महराजगंज

--हरिशंकर राढ़ी 

नया चौक  महराजगंज        छाया : राजनाथ मिश्र 
महराजगंज बाजार और पूरे क्षेत्र की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि इक्कीसवीं सदी के लगभग दो दशक पार कर लेने के बावजूद यहां अभी पश्चिमीकरण और बनावटीपन नहीं आया है। यह कहा जा सकता है कि जितना विकास राजमार्गों और जिला मुख्यालयों के पास वाले कस्बों का हुआ, उसकी तुलना में महराजगंज काफी पिछड़ा ही है । अभी तक इस क्षेत्र में कोई सिनेमा हॉल, ऑडीटोरियम, स्टेडियम या बड़ा सार्वजनिक सभा स्थल भी नहीं है। यदि महराजगंज बाजार का व्यापार देखा जाए तो किसी भी बड़े कस्बे से टक्कर ले सकता है। बड़ी गल्ला मंडी, सब्जी मंडी, मशीनरी, भवन निर्माण सामग्री और जीवनोपयोगी पदार्थों का एक विशाल बाजार है यहां। महराजगंज से उत्तर लगभग 12 किलोमीटर की दूरी, यानी घाघरा के तट तक कोई दूसरा बड़ा बाजार नहीं है और समस्त बड़ी खरीदारियां लोग यहीं से करते हैं। पश्चिम में राजे सुल्तान पुर, दक्षिण में कप्तानगंज और पूरब में सरदहा तथा बिलरियागंज बाजार जरूर हैं लेकिन बड़ी खरीदारी के लिए अभी महराजगंज थोकमंडी जैसी भूमिका रखता है।इस सबके बावजूद महराजगंज का विकास नहीं हुआ। राजनैतिक कमजोरी, मुख्य मार्ग से दूर होना और रेलमार्ग से अतिदूर होना इसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। कुछ तो यहां के लोगों की सीधी-सादी जीवन शैली और सरलता के कारण है। न जाने कितने बड़े व्यापारी, डॉक्टर और अन्य प्रमुख लोग अपनी दूकानों और बाजार की सड़कों पर नितांत घरेलू कपड़ों - लुंगी-बनियान-गमछा या तुड़ी-मुड़ी धोती में सहज भाव से मिल जाएंगे। चेहरे और दिल में वही अपनापन, मजाक और राजी-खुशी की चिंता करते, पान की पीकें मारते या चुक्कड़ में चाय पीते । लुंगी के ऊपर जेब वाली बनियान (औरेबकट) में नोटों की गड्डी होगी लेकिन आप उन्हें अति सरल साधारण किसान से अधिक होने का अनुमान नहीं लगा पाएंगे।
नया चौक  महराजगंज        छाया : राजनाथ मिश्र
‘‘काहो गुरू, का हालि हौ ? मजे में बाटा न?’’ जैसे जुमले यहां-वहां उछलते मिल जाएंगे। जिस भी हलवाई की दूकान में बैठने की जगह है, वहां लोग बैठे राजनीति, सुख-दुख और हंसी मजाक करते मिल ही जाएंगे। काम की चिंता नहीं, मर जाएंगे तो कौन सा लेके जाना है। महराजगंज देश के उन कुछ चुनिंदा बाजारों में है जहां ग्राहकों से अधिक महत्त्व यार-दोस्तों और नियमित बैठक करने वालों को मिलता है। सामान अन्य बाजारों की तुलना में आश्चर्यजनक रूप से सस्ते। शायद क्षेत्र की क्रयशक्ति और सादगी का प्रभाव होगा। उतना ही चाहिए जितने में काम चल जाए। सांई इतना दीजिए जामें कुटुम समाय।
पूरे बाजार क्षेत्र में कोई भी ऐसी विशाल इमारत नहीं है जिसका जिक्र किया जा सके। अब महराजगंज टाउन एरिया की श्रेणी में है। टाउन एरिया के नाम पर सफाई की व्यवस्था तो दिखती है, पटरी दूकानदारों से और बाहरी व्यापारियों से तहबाजार भी वसूली जाती है किंतु कोई नगरीय सुविधा अभी तक दृष्टिगत नहीं होती है। सड़कों की स्थिति पहले की तुलना में सुधरी है। बाजार की सीमा का विस्तार हुआ है। यह विस्तार बिलरियागंज रोड और राजेसुल्तान पुर रोड पर अधिक है। महराजगंज से भैरोजी का अंतर और सीवान समाप्त सा हो गया है। जबसे छोटी सरयू पर पक्का पुल बना और देवारा सहदेवगंज की सड़क पक्की बनी, इधर भी महराजगंज कस्बे ने अपना पैर फैलाया है।
बाजार का मुख्य स्थान तो अब नया चौक ही माना जाता है किंतु अब बाजार की सीमा में कई चौक हो गए हैं। बजरंग चौक का विकास सर्वाधिक हुआ है। सहदेवगंज मोड़, थाना चौक और भैरोजी मोड़ भी भीड़ इकट्ठा कर रहे हैं। महराजगंज में ब्लॉक मुख्यालय भी है। बैंक हैं, विद्यालय हैं किंतु अच्छे चिकित्सक और अस्पताल की कमी बहुत खलती है। इसके अतिरिक्त रोडवेज बसों का नेटवर्क भी बहुत ही दयनीय स्थिति में है जिसके परिणामस्वरूप आवागमन की दिक्कतें हद पार कर जाती हैं। टैक्सीवालों के जिम्मे पूरी परिवहन व्यवस्था है और वे दादागीरी से बाज नहीं आते। बिलरियागंज, कप्तानगंज, आजमगढ़, राजेसुल्तानपुर और सरदहा के लिए टैक्सीवालों ने नंबर व्यवस्था कर ली है और जबतक उनकी गाड़ी ठसाठस नहीं भर जाती, वे हिल नहीं सकते। चलिए, गाड़ी तो आपने भूसे जैसी भर ली, किराया तो वाजिब रखिए। पर नहीं जनाब, यहां 7 किमी का किराया 15 रुपये है। अब कर ही क्या सकते हैं आप?
इतिहास सिमट रहा है महराजगंज का। कौन इसे संभाले। महराजगंज की पुरातनता और गौरव की प्रतीक संस्थाएं धूल फांक रहीं हैं। महराजगंज इंटर कॉलेज, जो कभी अपनी अच्छी पढ़ाई, दिग्गज अध्यापकों और सख्त अनुशासन के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था, अपनी सारी गरिमा खो चुका है। सरकारी विद्यालयों की स्थिति, छात्र अनुशासन और अध्यापकों की स्थिति पर क्या कहा जाए। नए-नए तथाकथित अंगरेजी स्कूल खुल रहे हैं और वे अपनी दूकानदारी अयोग्य अध्यापकों के दम पर खूब चला रहे हैं।
महराजगंज बाजार की रामलीला और दशहरा भी कभी बहुत भीड़ बटोरता था। बजरंग चौक के पास दशहरे के दिन राम-रावण युद्ध हम बच्चों के लिए बहुत बड़ा मनोरंजन हुआ करता था। हमारे मन में तब दशहरे के दिन के मेले में रावण की भूमिका निभाने वाले उस गुप्ता जी के प्रति बहुत बड़ा आकर्षण होता था। उनका चलना, गरजना, तलवार भांजना और राम को ललकार बहुत ही प्रभावी लगता था। सुना है कि अब उनका निधन हो गया है।
पोखरा बजरंग ,चौक  महराजगंज                          छाया : राजनाथ मिश्र
प्राचीन धरोहरों में बाजार के पूरब और पश्चिम में स्थित दो पोखरों को भी शामिल किया जा सकता है। एक छोटा किंतु गहरा पोखरा महराजगंज इंटर कॉलेज के सामने था, छात्र जीवन में हम मध्यावकाश में पोखरे की सीढ़ियों पर बैठकर मछलियां देखते और बातें करते। सुना है कि पोखरा सूख गया है और कुछ दिन में उस पर कोई इमारत बन जाएगी। कौन पूछता है इन्हें अब !
दूसरा पोखरा बजरंग चौक के पश्चिम देवतपुर मार्ग पर है। समय ऐसा बदला कि जिस चौक की पहचान पोखरे के नाम पर होनी चाहिए थी, उस पोखरे की पहचान अब चौक के नाम से होने लगी है। तब कोई बजरंग चौक नहीं होता था। पोखरे से होकर अक्षयबट और विशुनपुर (राढ़ी का पूरा) के उत्तरी छोटे टोले को रास्ता जाता था। इस पोखरे के पास का राढ़ियों का टोला पोखरे से ही नामित किया जाता था। लोग सहज भाव से इसे ‘पोखरवा पर क फलांने’ कहकर परिचय देते। श्री जे0के0 मिश्र के अनुसार महराजगंज के दोनों पोखरे आजमगढ़ के किसी अग्रवाल ने बनवाए थे। पहले वह अग्रवाल परिवार महराजगंज में ही रहता था, कालांतर में वह आजमगढ़ शहर में बस गए। पोखरों पर कोई शिलापट या नामोल्लेख नहीं है जिससे कि पता चले कि वह महानुभाव कौन थे।
समय बदला। पानी के लिए हैंडपंप हो गए। सिंचाई के लिए नहरें और ट्यूबवेल। फिर इन पोखरों की उपयोगिता
ही क्या रही और उपयोगिता नही तो इन पुरखों को संभाले कौन और क्यों? एक समय का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतीक यह पोखरा ध्वंश की स्थिति में है। सीढ़ियां टूट रही हैं, चारो ओर से अवांछित घासें उगी हुईं, जल में काई लगी हुई है और सौंदर्य से वंचित। न जाने लोगों का सौंदर्यबोध समाप्त हो गया है या प्रकृति में ही सौंदर्य न रह गया हो।शहरों में लोग ऐसे जलस्रोतों के आसपास बैठे मिल जाते हैं। शायदकोई कवि, साहित्यप्रेमी, दार्शनिक, वैरागी या प्रेमी होता तो इन सीढ़ियों पर बैठकर खुद से, किसी मित्र से या किसी मानसिक मूर्ति से बातें करता।
पोखरा बजरंग ,चौक  महराजगंज      छाया : राजनाथ मिश्र
महराजगंज को अभी पिछड़ा माना जा सकता है, किंतु सुखद यह है कि यहां के विचारों पर पश्चिमीकरण का घातक हमला नहीं हुआ है। परिवर्तन आया है, सामाजिक और नैतिक क्षरण हुआ है, लेकिन अन्य जगहों की तुलना में कम। अपराध भी होते हैं किंतु सामान्यतः अभी सामाजिकता और संबंध बचे हुए हैं और मानवीय मूल्यों की पूरी तरह मौत नहीं हुई है। बाजार में हिंदू और मुसलमान भी हैं, लेकिन सांप्रदायिकता जैसी कोई चीज नहीं। हिंदुओं की दूकान के ग्राहक मुस्लिम और मुसलमानों के हिंदू। आपसी भाई चारा और शादी-व्याह, सुख-दुख में उठना -बैठना और खान-पान। दंगों के देश में पूरी तरह अमन और शांति का कस्बा महराजगंज। चाय-समोसे, जलेबी, पकौड़ी और टिक्की की खुशबू उड़ाता महराजगंज, पटरियां पर दूकान लगाए महराजगंज और संबंध निभाता महराजगंज। बहुत अधिक भौतिक विकास न पाने वाला महराजगंज फिर भी बहुत अच्छा, बहुत सुंदर है।

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